भोलेनाथ की नगरी काशी में बेहद ही अलग अंदाज में चिता की भस्म से होली खेली जाती है,,,।

भोलेनाथ की नगरी काशी में बेहद ही अलग अंदाज में चिता की भस्म से होली खेली जाती है,,,।
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चिता की भस्म से होली क्यों खेलते हैं ?
वाराणसी/उत्तर प्रदेश *** रंगीले रोचक और दिलचस्प पर्व , परम्परा और त्योहारों से दुनियाभर में भारत का अलग ही मुकाम है। जैसा की हम सभी जानते हैं कि होली हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। इस वर्ष भी 25 मार्च को होली का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। होली को लेकर देशभर में अलग ही उत्साह और आनंद देखने को मिलता है। इस दिन पुरे देशभर में होली रंगों और गुलाल के साथ खेली जाती है। लेकिन भोलेनाथ की नगरी काशी में बेहद ही अलग अंदाज में होली खेली जाती हैं। यहां पर चिता की भस्म से होली खेली जाती है। काशी में इस होली को ‘मसाने की होली’ कहा जाता है। आइए जानते हैं भस्म होली कहाँ क्यों और कैसे मनाई जाती है।

भगवान शिव ने शुरू की भस्म होली

भस्म होली को ‘मसाने की होली’ के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथा के मुताबिक इस परंपरा की शुरुआत भगवान शिव ने की थी। रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद काशी के मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव विचित्र होली खेलते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव मां पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे। उस समय उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी। लेकिन वह श्मशान के भूत, पिशाच, प्रेत और जीव जंतु के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद महादेव ने शमशान में बसने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी।

ऐसे मनाई जाती है भस्म होली
बनारस में रंग-गुलाल के अतिरिक्त धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेली जाती है। चिता भस्म की होली पर बाबा विश्वनाथ के भक्त जमकर झूमते गाते और नृत्य करते हैं। इस परंपरा के मुताबिक मसाननाथ की प्रतिमा पर अबीर-गुलाल लगाने के बाद घाट पर पहुंचकर ठंडी हो चुकी चिताओं की भस्म उठाई जाती है और एक दूसरे पर फेंककर परंपराओं के अनुसार भस्म होली खेली जाती है।

वाराणसी के महाश्मशान घाट हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका पर अलग-अलग दिन ये होली खेली जाती है. हरिश्चंद्र घाट पर रंगभरी एकादशी के दिन यह होली होती है और मणिकर्णिका घाट पर रंगभरी एकादशी के अगले दिन इसका आयोजन होता है।

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