बिना चेतावनी वन विभाग की कार्रवाई से बरसात के मौसम में वन गुर्जर परिवार के सामने छत का संकट उत्पन्न हो गया,,,।

बिना चेतावनी वन विभाग की कार्रवाई से बरसात के मौसम में वन गुर्जर परिवार के सामने छत का संकट उत्पन्न हो गया,,,।
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कोटद्वार गढ़वाल *** सुखरो बीट के  बेलाडॉट इलाके में रविवार को लैंसडौन वन प्रभाग द्वारा वहां रहने वाले वन गुर्जरों के आवासों को तोड़कर उन्हें 3 महीने में डेरा खाली करने के निर्देश दिए गए हैं। जिससे वन गुर्जरों के सामने छत का संकट उत्पन्न हो गया है। वन गुर्जरों के इस डेरे में मुखिया मस्तु के परिवार के 34 लोग निवास करते हैं। जिनमें लगभग 6 बच्चे हैं जो कि आसपास के विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। यदि 3 महीने बाद वन गुर्जरों को यह डेरा खाली करना पड़ेगा तो इन 6 बच्चों की शिक्षा दीक्षा कैसे हो पाएगी बच्चों के भविष्य को लेकर यह बडा़ सवाल है। 


डेरा संचालक मस्तू पुत्र इल्मदीन का कहना है कि वन विभाग द्वारा  सुखरो घराट, कंपास नंबर -2 के अंतर्गत यहां रहने की अनुमति दी गई थी जिसके कारण वह यहां पर रह रहे हैं। मस्तू का कहना है कि वह यहां पर केवल डेरा डालकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं,  उनकी मंशा वन विभाग की भूमि के साथ या उनके पेड़ों के साथ छेड़छाड़ करने की नहीं है। फिर भी वन विभाग द्वारा उनके डेरे पर आकर उनके आवासों व मवेशियों के आवासों को तोड़ दिया गया ऐसे में वह जाएं तो जाएं कहां । मस्तू का कहना है कि उनको ग्वालगढ़ जाने के लिए कहा गया है, लेकिन वहां की चुनौती यह है कि ना तो वहाँ भैंसों के चरने की जगह है और ना ही वहां पानी है। ऐसे में वह जाएं तो कहां जाएं। कहा कि वह मानते हैं वन गुर्जर खानाबदोश जीवन जीते हैं लेकिन ऐसे में जो उनके बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं उनके भविष्य का क्या होगा। बताया कि विभाग द्वारा उनको 3 महीने का समय दिया गया है, देखते हैं कि कैसे वह इन 3 महीनों में अपनी व्यवस्था करेंगे।

रेंज अधिकारी विजेंद्र दत्त तिवारी


वही पूरे मामले पर कोटद्वार रेंज अधिकारी विजेंद्र दत्त तिवारी का कहना है कि बेलाडॉट स्थित डेरे को कोरोना की वजह से इन गुर्जरों को दिया गया था। बताया कि इनका समय केवल 6 महीने का है  वर्तमान में इनको सहारनपुर चले जाना चाहिए। अगले छह माह के लिए अक्टूबर से इनको कोटद्वार वन क्षेत्र में अनुमति दी जाएगी। कहा कि वन-संपदा की दृष्टि से देखें तो एक ही इलाके में गुर्जरों को लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता। यदि ऐसा होता है तो वहां की प्राकृतिक संपदा को खासा नुकसान पहुंचता है, कहा की वन विभाग को उप-जिलाधिकारी के माध्यम से शिकायत मिली थी कि डेरे पर रहने वाले लोगों से आसपास के ग्रामीणों को आपत्ति है इसलिए इसे खाली कराया जाए। बताया कि मौके पर पाया गया कि डेरे पर अनुमति से ज्यादा कच्चे आवासों का निर्माण किया जा रहा है, साथ ही वहां के साल के पेड़ों को भी काटा जा रहा है जिससे वन संपदा का नुकसान हो रहा है। कहा की अनुमति केवल एक व्यक्ति को दी गई थी इसका यह अर्थ नहीं तो उसके अलावा यहां अन्य लोग भी डेरा डालें। कहां की 3 महीने की मोहलत दी गई है, यदि ऐसा नहीं होता तो उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी।

K3 India

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