लगातार अनावश्यक मुकदमेबाजी, पति को नौकरी से हटाने की शिकायतें, क्रूरता, तलाक के लिए आधार : सुप्रीम कोर्ट

लगातार अनावश्यक मुकदमेबाजी, पति को नौकरी से हटाने की शिकायतें, क्रूरता, तलाक के लिए आधार : सुप्रीम कोर्ट
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जब पति-पत्नी का विवाद होता है तो अक्सर यह देखा जाता है कि पत्नी की तरफ से एक साथ कई मुकदमें व शिकायतें दर्ज़ करवा दी जाती हैं। कई बार ऐसी मुकदमेबाजी केवल मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न के लिए की जाती है। कुछ वकील भी ऐसे मामलों में पत्तियों को ज्यादा से ज्यादा मुकदमे दर्ज कराने की सलाह देते हैं ताकि पति पर लगातार दबाव बनाया जा सके और उसे मनमाफिक समझौते के लिए मजबूर किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस में मुद्दे पर एक अहम फैसला सुनाया है, आइए जानें इस फैसले के बारे मे क्या था मामला,,,

इस मामले में पत्नी शादी होते ही उसी रात मैरिज हॉल छोड़कर भाग गई थी। पत्नी का कहना था कि उसकी शादी उसकी मर्जी के बिना हुई थी। जब उसे वापस लाने के सारे प्रयास विफल हो गए तो पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग करते हुए नोटिस जारी किया। इसके बाद पत्नी ने लगातार मुकदमों और शिकायतों की झड़ी लगा दी । (1) पत्नी ने कोर्ट में कई बेबुनियाद केस फाइल किए,,,

(2) पति एक कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा था। पत्नी ने विद्यार्थियों और सह-कर्मियों के सामने पति को अपमानित किया व धमकाया। यहां तक कि पत्नी ने उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

(3) पति के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने की मांग करते हुए

कॉलेज के अधिकारियों को पत्र लिखे । (4) आरटीआई अधिनियम कार्यवाही का दुरुपयोग करते हुए अपने पति के

पुनर्विवाह के बारे में जानकारी मांगी

(5) उसके खिलाफ 494 आईपीसी के तहत शिकायत दर्ज कराई। यहां तक की पति की दूसरी शादी में मौजूद कुछ लोगों को भी इस केस में लपेटने की कोशिश की

(6) पति के एंप्लॉयर को अपने पति के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज


सुप्रीम कोर्ट का फैसला

ट्रायल कोर्ट ने पति की तलाक याचिका मंजूर कर दी थी। फिर यह केस होते-होते सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। तलाक के इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की ।

  1. कोर्ट ने कहा कि इस केस में पत्नी ने पति की नौकरी छीनने की पूरी कोशिश की कार्यस्थल पर पति का अपमान भी किया। इस तरह का दुर्व्यवहार मानसिक क्रूरता का उदाहरण है और यह तलाक का आधार का है।
  2. सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में दोहराया कि लगातार आरोप लगाना और मुकदमेबाजी करना मानसिक क्रूरता का उदाहरण है और तलाक का आधार है। मामला शिवशंकरन बनाम शांतिमीनल;

सुझाव

  1. यह फैसला केवल पत्नी के आचरण के संदर्भ में ही नहीं है। अगर कोई पति इस तरह का दुर्व्यवहार करता है तो पत्नी भी मानसिक क्रूरता के आधार पर पति तलाक मांग सकती है।
  2. अनावश्यक और झूठे मुकदमे व शिकायतें कभी भी दर्ज़ न कराएं। जहां तक हो सके बिल्कुल सटीक और सच्चे तथ्यों पर अपना केस लड़ना चाहिए।
  3. वह दौर जा चुका जब यह माना जाता था की जीतने के लिए शिकायतों और केसों की झड़ी लगा दो। उल्टा इस तरह के व्यवहार को अब न्यायालयों द्वारा नकारात्मक नजरिए से देखा जाता है ।
  4. आज का दौर पढ़ी-लिखी वकालत का दौर है। अपने केस की हर ड्राफ्टिंग अच्छे वकील से कराएं और सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के फैसलों के मार्गदर्शन में अपने मुकदमे लड़े।
  • विशाल शर्मा (अधिवक्ता) 9555893614

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