बाल विवाह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के अधिकार का हनन, सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह को जड़ से उखाड़ने के लिए जारी किए दिशा निर्देश,,,।
• बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) के सहयोगी गैरसरकारी संगठन ‘सेवा’ और कार्यकर्ता निर्मल गोराना अग्नि की याचिका पर आया फैसला
• सीएमएफआई 200 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है जिसने 2023-24 में पूरे देश में 120,000 से भी ज्यादा बाल विवाह रुकवाए और 50,000 बाल विवाह मुक्त गांव बनाए
• जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस बनाम भारत सरकार मामले में हालिया फैसले का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने यौन शिक्षा व बच्चों के सशक्तीकरण पर दिया जोर
नई दिल्ली ***सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के उद्देश्य से कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए सरकार को विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि बाल विवाह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के अधिकारों का हनन है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि बाल विवाह या यहां तक की किसी बच्चे की सगाई भी अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनने के अधिकार का हनन है।
एक गैरसरकारी संगठन सोसाइटी फॉर एनलाइटेनमेंट एंड वालंटरी एक्शन (सेवा) ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया था कि देश में बाल विवाह की स्थिति गंभीर है और इसकी रोकथाम के लिए बनाए गए कानूनों पर उनकी भावना के अनुसार अक्षरश: अमल नहीं किया जा रहा है। गैरसरकारी संगठन ‘सेवा’ देश से 2030 तक पूरे देश से बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य के साथ काम कर रहे ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ (सीएमएफआई) अभियान का सहयोगी संगठन है। इस फैसले से भारत में इन प्रयासों को और मजबूती मिलेगी जो पहले से ही बाल विवाह के खिलाफ अभियान का वैश्विक नेता है।
पिछले एक साल में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान और इसके सहयोगी गैरसरकारी संगठनों के प्रयासों से देश में सफलतापूर्वक 120,000 बाल विवाह रुकवाए गए। इसके अलावा, सरकार के प्रयासों से बाल विवाह की दृष्टि से संवेदनशील 11 लाख बच्चों का विवाह होने से रोका गया।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बचाव-संरक्षण-अभियोजन रणनीति और समुदाय आधारित दृष्टिकोण पर जोर देते हुए कहा, “कानून तभी सफल हो सकता है जब बहुक्षेत्रीय समन्वय हो। कानून प्रवर्तन अधिकारियों के प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हम एक बार फिर समुदाय आधारित दृष्टिकोण की जरूरत पर जोर देते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राहत जताते हुए याचिका दायर करने वाले गैरसरकारी संगठन ‘सेवा’ की अल्का साहू और सामाजिक कार्यकर्ता निर्मल गोराना अग्नि ने कहा,”याचिकाकर्ता होने के नाते हम इस ऐतिहासिक फैसले के लिए हृदय से सुप्रीम कोर्ट के आभारी हैं। यह फैसला हमारे देश से बाल विवाह के खात्मे की दिशा में एक बेहद अहम कदम है। ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के माध्यम से हम सभी इस बुराई के खिलाफ संघर्ष के लिए इकट्ठा और एकजुट हुए हैं और हमारी लड़ाई बच्चों के लिए एक सुनहरे व सुरक्षित भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी।“
‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान के संस्थापक भुवन ऋभु ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भारत और पूरी दुनिया के लिए नजीर बताते हुए कहा, “यह ऐतिहासिक फैसला सांस्थानिक संकल्प को मजबूती देने की दिशा में निर्णायक बिंदु साबित होगा। यह देश से बाल विवाह के समग्र उन्मूलन के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बेहद अहम जीत है। सुप्रीम कोर्ट और सरकार के प्रयासों ने दिखाया है कि उन्हें बच्चों की परवाह है और अब समय आ गया है कि हम सभी आगे आएं और साथ मिलकर इस सामाजिक अपराध का खात्मा करें।”
ऋभु ने कहा,”अगर हम अपने बच्चों की सुरक्षा करने में विफल हैं तो फिर जीवन में कोई भी काम मायने नहीं रखता। सुप्रीम कोर्ट ने एक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत को फिर मजबूती से रेखांकित किया है और ‘पिकेट’ रणनीति के जरिए ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ भी इसी पर जोर देता रहा है। बाल विवाह अपने मूल रूप में बच्चों से बलात्कार है। यह निर्णय सिर्फ हमारे संकल्प को ही मजबूती नहीं देता बल्कि इस बात को भी रेखांकित करता है कि जवाबदेही और साझा प्रयासों से हम बच्चों के खिलाफ हिंसा के सबसे घृणित स्वरूप बाल विवाह का खात्मा कर सकते हैं।”
‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान 200 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है जो 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लिए पूरे देश में काम कर रहे हैं। ये सभी सहयोगी संगठन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक समग्र रणनीति ‘पिकेट’ पर अमल कर रहे हैं जिसमें नीति, संस्थान, संम्मिलन, ज्ञान, परिवेश, तकनीक जैसी चीजें शामिल हैं। धार्मिक नेताओं और समुदायों के साथ साझा प्रयासों से इसने इस अपराध के खात्मे के लिए 4.90 करोड़ लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाई है।