सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, बच्चों के अश्लील वीडियो देखना व रखना अपराध,,,।
नई दिल्ली *** सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी यानी बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करना और उन्हें देखना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत अपराध है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द करते हुए यह आदेश दिया जिसमें कहा गया था कि बच्चों की अश्लील फिल्में डाउनलोड करना और उन्हें देखना पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध के दायरे में नहीं आता।
बच्चों के यौन शोषण, बाल श्रम, और बाल विवाह की रोकथाम के लिए काम कर रहे 120 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की याचिका पर अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह पॉक्सो कानून में “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” की जगह “चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लायटेटिव एंड एब्यूज मैटीरियल (सीएसईएएम)” शब्द का इस्तेमाल करे ताकि जमीनी हकीकत और इस अपराध की गंभीरता एवं इसके विस्तार को सही तरीके से परिलक्षित किया जा सके।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को निर्देशित किया कि वे अदालती कार्रवाइयों एवं आदेशों में “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” के बजाय “चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लायटेटिव एंड एब्यूज मैटीरियल” शब्द का प्रयोग करें। खंडपीठ ने कहा कि किसी बच्चे के साथ यौन शोषण व उत्पीड़न की एक भी घटना उसे अवसाद में धकेल देती है। जब-जब उसके शोषण व उत्पीड़न की तस्वीरें या वीडियो देखे या किसी के साथ साझा किए जाते हैं, तब-तब यह बच्चे के अधिकारों व उसकी गरिमा का उल्लंघन है।
शीर्ष अदालत के फैसले पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए याची और जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “भारत ने दुनिया भर में पसरे और संगठित अपराधों की रोकथाम और उससे बच्चों की सुरक्षा के लिए एक बार फिर दुनिया को रास्ता दिखाते हुए एक विस्तृत रूपरेखा की आधारशिला रखी है। यह एक दूरगामी फैसला है जिसका असर पूरी दुनिया में होगा। संगठित अपराधों और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के मामले में यह फैसला इतिहास में अमिट रहेगा। जब भी कोई व्यक्ति बच्चों के अश्लील वीडियो या उनके यौन शोषण की सामग्रियों की तलाश करता है या उन्हें डाउनलोड करता है तो वह वस्तुत: बच्चों से बलात्कार की मांग को बढ़ावा दे रहा होता है। यह निर्णय ‘बाल पोर्नोग्राफ़ी’ से जुड़ी हमारी उस पारंपरिक समझ को भी तोड़ता है जो इसे वयस्कों के मनोरंजन के तौर पर देखती है। इस आदेश के बाद लोग बच्चों के यौन शोषण और इससे जुड़ी सामग्रियों को एक अपराध के तौर पर देखना शुरू करेंगे।”
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस ने जनवरी 2024 में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी। मद्रास हाई कोर्ट ने बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करने व उन्हें देखने को पॉक्सो और सूचना तकनीक (आईटी) अधिनियम के तहत अपराध नहीं मानते हुए 28 वर्षीय आरोपी के खिलाफ मामले को खारिज कर दिया था। मद्रास हाई कोर्ट ने आईटी व पॉक्सो अधिनियम के तहत मुकदमे का सामना कर रहे आरोपी को बरी करने के लिए केरल हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस ने इस फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि मद्रास हाई कोर्ट का केरल हाई कोर्ट के फैसले पर भरोसा करना त्रुटिपूर्ण था। याचिका में कहा गया कि सामग्रियों की विषयवस्तु एवं प्रकृति तथा इसमें बच्चों की संलिप्तता इसे पॉक्सो अधिनियम के दायरे में ले आती हैं और केरल हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया था, यह इससे बिलकुल अलग किस्म का अपराध था। मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले से देश में आम लोगों में एक संदेश गया कि बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करना व देखना अपराध नहीं है। इससे बच्चों की अश्लील फिल्मों की मांग को और व्यावसायिक लाभ के लिए मासूम बच्चों को अश्लील फिल्में और वीडियो बनाने में शामिल करने को बढ़ावा मिलेगा। शीर्ष अदालत ने 19 मार्च को मद्रास हाई कोर्ट के फैसले पर तीखी टिप्पणी करते हुए आदेश सुरक्षित रख लिया था।
बताते चलें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में बाल पोर्नोग्राफी के मामले में तेजी से इजाफा हुआ है। देश में 2018 में जहां 44 मामले दर्ज हुए थे वहीं 2022 में यह बढ़कर 1171 हो गए।
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जितेंद्र परमार
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