यमकेश्वर गढ़वाल: यादाश्त खो चुके बुजुर्ग फिल्मी स्टोरी की तरह 10 साल बाद अपने गांव लौटे,,,।
पौड़ी जनपद के उदयपुर पट्टी यमकेश्वर के एक गांव के बुजुर्ग पूरे 10 साल बाद अपने गांव लौटे।
यम्केश्वर गढ़वाल/उत्तराखंड *** यमकेश्वर के नौगांव मल्ला निवासी बलबीर सिंह राणा दिल्ली में नौकरी करते थे। वर्ष 2012 में वह अपनी बेटी की शादी के लिए दिल्ली से अपने गांव आ रहे थे। हरिद्वार में वह जहरखुरानी गिरोह का शिकार हो गये। उनके पारिवारिक सदस्यों ने उनकी बहुत तलाश की, मगर कहीं उनका पता नही चल पाया। उधर जहरखुरानी गिरोह का शिकार होने के बाद बलवीर सिंह ने मानसिक संतुलन खो बैठे। ज्वालापुर हरिद्वार निवासी ठेकेदारी का काम करने वाले दो भाईयों करण पाल व बृजपाल को वह मानसिक विक्षिप्त हालत में मिले। उन्होंने उनसे पूछताछ की तो वह अपने घर व गांव के बारे में कुछ भी नहीं बता पाए। जिसके बाद दोनों ने अपने घर में ही बुजुर्ग को शरण दी और घर के बुजुर्गों की भांति उनकी देखभाल की। संयोग देखिए ठेकेदार करण पाल और बृजपाल भाइयों को हाल में ही यमकेश्वर के नौगांव-बुकंडी मोटर मार्ग पर पेंटिंग का काम मिला। वह अपने साथ बुजुर्ग बलवीर को भी यहां ले आए। यहां विध्यावासिनी मंदिर पहुंचने पर बलवीर सिंह को आपने गांव का नाम याद आ गया। उन्होंने ठेकेदार भाइयों को यह बात बताई तो उन्होंने नौगांव के ग्राम प्रधान राम सिंह को इस संबंध में सूचित किया। उसके बाद ग्राम प्रधान बुजुर्ग बलवीर सिंह से मिलने पहुंचे। दोनों ने एक-दूसरे को पहचान लिया। मगर, यह कहते हुए उन्होंने घर लौटने से इन्कार कर दिया कि जब वह अपनी बेटी की शादी के लिए ही घर नहीं आ पाए और उसका कन्यादान नहीं कर पाए तो अब घर जाकर क्या करना। किसी तरह समझाबुझा कर बुजुर्ग को गांव ले जाया गया। 10 वर्ष बाद गांव पहुंचे बुजुर्ग को देखने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण एकत्र हो गए।
बेटी की शादी करने गांव आ रहे पिता हो गए थे जहरखुरानी के शिकार, मानसिक संतुलन खो बैठे राणा जी को 10 वर्ष अपने घर मे शरण देकर अपने बुजर्गो की तरह सेवा करने वाले दोनों भाई, करनपाल और बृजपाल ने मानवता की जो मिसाल पेश की है वह वंदनीय है।