राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,कर्णप्रयाग के संस्कृत एवं राजनीति विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र का आयोजन हुआ,,,।
कर्णप्रयाग/उत्तराखंड *** डॉ शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग के संस्कृत एवं राजनीति विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में (भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् ICPR द्वारा संपोषित) “भारतीय ज्ञान परम्परा में दर्शन का योगदान (राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में)” विषय के संदर्भ में द्वद्विवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र का आयोजन हुआ ।कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलित एवं सरस्वती वंदना कर हुआ ।
इस कार्यक्रम का सफल संचालन श्री कीर्तिराम डंगवाल असिस्टेंट प्रोफेसर जी ने किया, डॉ. मदनलाल शर्मा जी ने अतिथियों का परिचय एवं स्वागत कराया । डॉ मृगांक मलासी जी ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की और कहा कि इस कार्यक्रम के संचालन में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् ICPR का महत्वपूर्ण योगदान है । साथ ही महाविद्यालय के संस्कृत एवं राजनीति विज्ञान विभाग के प्राध्यापकों डॉ. कविता पाठक डॉ चंद्रावती टम्टा ,डॉ हरीश बहुगुणा डॉक्टर मदनलाल शर्मा डॉक्टर कीर्ति राम डंगवाल एवं कार्यालय के सहयोग एवं संयुक्त प्रयास से इस कार्यक्रम का सफल संचालन संभव हो पाया है इसके अतिथियों का वाचन आरंभ हुआ । इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर जोरावर सिंह जे.एल.एन. महाविद्यालय हरियाणा जी ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृत आरंभ से ही एक विश्व प्रख्यात भाषा रही है है एवं इस भाषा में वह गुण विद्यमान है जिसने भारत को विश्व गुरु बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया इसके उपरांत उन्होंने अपने रचित कविताओं में निहित भावों के माध्यम से सभी का हृदय जीत कर लिया । इसके उपरांत डॉ हरीश चंद्र रतूड़ी एवं डॉक्टर वाय. सी. नैनवाल एवं प्रभारी प्राचार्य डॉक्टर एम.एस. कंडारी जी ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में संस्कृत की महत्ता को उजागर करने का प्रयास किया एवं इस संगोष्ठी का किस प्रकार संचालन हुआ है उस पर भी प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि निश्चित ही जहां इस प्रकार की संगोष्ठीयां छात्रों के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इस प्रकार की संगोष्ठी में छात्र अपने को कल्याण के एवं ज्ञान अर्जन के विविध आयामों से जोड़ते हैं एवं भावी जीवन में शोध कार्य किस प्रकार संभव हो सकते हैं उन्हें जानते हैं। इसके उपरांत डॉक्टर मृगांक मलासी जी ने कविता पाठ किया एवं सभी उपस्थित अध्यापकों एवं छात्र छात्राओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी एक कविता का भाव देश के लिए जान देने वाले शहीदों के लिए भी था। इसके उपरांत डॉ हरीश बहुगुणा ने अपने संबोधन में कहा की निश्चित है संस्कृत भाषा भारतीय ज्ञान परंपरा की आरंभिका एवं पोषिका रही है । इस भाषा के गुण अनंत हैं। इस भाषा में रचित व्याकरण की सराहना वैज्ञानिकों द्वारा भी की गई है इस भाषा में पाणिनि, पतंजलि ,भर्तृहरि आदि कई मुनियों ने भाषा के विकास के साथ ही भाषा विज्ञान के मूलभूत तत्त्वों को भी बताया है। जहां संपूर्ण विश्व युद्ध एवं स्वार्थ की भावनाओं में लीन था वहीं भारतीय महर्षि ज्ञान के सागर में गोते लगा रहे थे । इसके उपरांत डॉ. कविता पाठक एवं डॉ. चंद्रावती टम्टा जी ने अपने उद्बोधनों में कहा कि किस प्रकार भारत की समस्त ज्ञान विधाएं संस्कृत में निहित ज्ञान की आभारी हैं। संस्कृत में रचित अर्थशास्त्र आज अर्थशास्त्र ,राजनीति विज्ञान आदि विषयों में पाठन हेतु प्रमुख ग्रंथ है। इन ग्रंथों के अभाव में हम कई मूलभूत सिद्धांतों से अनभिज्ञ रह जाते । इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के सभी अध्यापक डॉ. आर.सी. भट्ट , डॉ. एसआर सिंह, डॉक्टर राधा रावत, डॉक्टर जितेंद्र , डॉ. विजय , श्री कमल किशोर द्विवेदी, स्वाति सुंदरियाल, हिना नौटियाल, नरेंद्र पंघाल , डॉ शालिनी सैनी, डॉ चंद्रमोहन जनस्वान, डॉ भरत बैरवाण, डॉ. तौफीक , डॉ. वेणीराम अंथवाल आदि उपस्थित रहे । साथ कार्यालय की ओर से भी भरपूर सहयोग मिला , जिसमें विशेष सहयोग J.S. रावत एवं सोहन मुनियाल जी ने किया ।
कार्यक्रम का समापन शांति प्रार्थना के साथ हुआ ।